Chapter 15 of Vasant Class 7 Hindi, titled "Neelakanth," holds significant importance in developing students' foundational understanding of Hindi language and concepts. A thorough grasp of this chapter is crucial to comprehend its context accurately. Expertly crafted exercise solutions designed according to CBSE Class 7 Hindi standards are invaluable tools for students to enhance their comprehension and problem-solving abilities.
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नीलकंठ ने खरगोश के बच्चे को किस तरह बचाया?इस घटना के आधार पर नीकनथ की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
एक दिन बाड़े में साप कहीं से घुस आया उसने खेलते खरगोश के बच्चे को मारने के लिए पीछे से जकड़ लिया, बच्चा चींचीं करने लगा।इस कंदर्न की आवाज सुनकर नीलकंठ की आंखे खुली और झूले से नीचे उतरे, उन्होंने साप को गर्दन से बड़ी ही सतर्कता से पकड़ा और तब तक अपनी चोंच वार किया जब तक वह अधमरा नहीं हो गया इस तरह बच्चे कि जान बचाई गई।
इस घटना के आधार पर नीलकंठ की निम्न विशेषताओं का ज्ञान होता है:
नीलकंठ बाड़े का एक सजग और सचेत मुखिया था।जिस प्रकार घर के मुखिया सबका ध्यान रखते हैं उसी प्रकार नीलकंठ भी सबका ध्यान रखते हैं।
नीलकंठ समझदार थे जिस प्रकार उन्होंने समझदारी से साप को जकड़ा उससे खरगोश का बच्चा बच गया।
नीलकंठ बहुत साहसी था , उसने जल्दी से बिना डरे साप को पकड़ा और बच्चे को सुरक्षित बचा लिया।
नीलकंठ बहुत दयालु ठवह पूरी रात खरगोश के बच्चे को पंख से गरम करते रहे।
मोर-मोरनी के नाम किस आधार पर रखे गए?
मोर के गर्दन बहुत दुदंर और नीली थी इसलिए मोर का नाम नीलकंठ रखा गया तथा मोरनी सदा उसके साथ उसकी छाया की तरह रहती थी इस आधार पर उसका नाम राधा रखा गया।
जाली के घर में पहुंचने पर मोर के बच्चो का किस प्रकार स्वागत हुआ?
जाली के घर में पहुंचने प्र मोर के बच्चो का स्वागत बड़े ही प्रेम से हुआ सभी सदस्य ने हर्ष व्यक्त किया जैसे मानो किसी नए विवाहित जोड़े का स्वागत कर रहे हो। मोर के बच्चो को देख कर कबूतर नाचना छोड़ कर उनके पीछे ही गुटर गु करने लगा जैसे वह उनके आने पर अपनी सहमति व्यक्त कर रहा हो।बड़े के सभी सदस्य मोर के बच्चो को देखना चाहते थे। खरगोश के बच्चे तो मोर के बच्चो के चारो तरफ खेलने लगे जबकि खरगोश एक कोने में बैठ कर उनका निरीक्षण कर रहे थे।तोते ने एक आंख बन्द करके उनका निरीक्षण किया और स्वागत किया।
लेखिका को नीलकंठ की कौन कौन सी चेष्टाएं बहुत भाती थी?
लेखिका को नीलकंठ की निम्नलिखित चेष्टाएं बहुत भाती थी:
नीलकंठ बहुत दयालु स्वभाव के थे तथा वह हमेशा सबकी रक्षा करते थे।
वर्षा ऋतु के समय नीलकंठ अपने पंख फैलाकर नाचता तथा राधा उनका साथ देती थी यह बात लेखिका को बहुत भाती थी। शायद नीलकंठ को इस बात का अंदाज़ा हो गया था इसलिए जब भी लेखिका आती तो नीलकंठ नाचने की मुद्रा में खड़ा हो जाता था।
नीलकंठ को पता था कि किसके साथ कैसा व्यवहार करना है उन्होंने खरगोश के बच्चो को खाने के लिए साप के टुकड़े करके दिए थे जब लेखिका के हाथ से भून हुए चने खाते थे तो वह उनको तनिक भी नुकसान नहीं पहुंचते थे।
इसके अतिरिक्त नीलकंठ का गरदन उठाकर इधर उधर देखना,सिर तिरछा करके बात सुनना और गरदन झुकाकर दाना चुगना और पानी पीना भी भाता था।
'इस आनंदोत्सव की रागिनी में बेमेल स्वर कैसे बज उठा' - वाक्य किस घटना की और संकेत करता है?
'इस आनंदोत्सव की रागिनी में बेमेल स्वर कैसे बज उठा' वाक्य लेखिका के कुब्जा मोरनी को लेकर आने की और संकेत करता है।लेखिका एक दिन एक बीमार कुभा मोरनी कों लेकर आती उसके ठीक होने के पश्चात उससे भी बाकी जनवरी के साथ जाल में भेज दिया गया परंतु कुबजा बाकी जनवरी के साथ घुल मिल नहीं पाई। वह राधा को तथा अन्य किसी भी जानवर को नीलकंठ के करीब नहीं आने देती थी यदि कोई आता तो उसे अपनी चोंच मारकर घायल कर देती थी। उसने ईर्ष्या में मोरनी के अंडे भी फोड़ दिए जब नीलकंठ को पता चला तो वह बहुत दुखी रहने लगे और बाड़े की रौनक ही चली गई।
वसंत ऋतु में नीलकंठ के लिए जाल घर में बन्द रहना कठिन क्यों हों जाता था?
वसंत ऋतु मोर का प्रिय ऋतु होता है इसमें पेड़ो पर नए पत्ते आते हैं,आम पर बौर आता है,अशोक नए लाल पत्तो से भर जाते हैं।वातावरण में खुशबू हो जाती हैं।इसलिए वर्षा ऋतु में नीलकंठ के लिए बन्द रहना कठिन हो जाता है।
जाली घर में रहने वाले सभी जीव मित्र बन गए थे परन्तु कुभ के साथ ऐसा संभव क्यों नहीं हो पाया?
जाली घर में रहने वाले सभी जीव मिलनसार स्वभाव के थे।इसके विपरित कुब्ज़ा ईर्ष्यालु स्वभाव की थी। कूभा को किसी का भी नील कंठ के करीब आना पसंद नहीं था इसलिए वह काफी जीवो को कोच मारकर घायल कर चुकी थी।जिसके कारण नीलकंठ भी उससे डर कर दूर भागता था।कूबजा के इसी स्वभाव के कारण वह किसी से भी दोस्ती नहीं कर पाई।
यह पथ एक ' रेखाचित्र ' हैं। रेखाचित्र की क्या विशेषताएं होती हैं जानकारी प्राप्त कीजिए और लेखिका के किसी और रेखाचित्र को पढ़िए।
जब एक साहित्यकार शब्दो के माध्यम से साहित्य में व्यक्ति, वस्तु, और घटना का सजीव चित्र बनाते हैं तो उसे रेखाचित्र कहते है। रेखाचित्र भावनात्मक रूप से सरल होते हैं इनमें प्राय: छोटी छोटी घटनाओं का उल्लेख होता हैं महादेवी वर्मा जी द्वारा लिखित अन्य रेखाचित्र स्मृति की रेखाएं एवं अतीत के चलचित्र है।
वर्षा ऋतु में जब आकाश में बादल भर जाते हैं तब मोर पंख फैलाकर धीरे धीरे मचलने लगता है, यह मोहक दृश्य देखने का प्रयास कीजिए।
माता पिता के साथ चिड़ियाघर जाकर यह दृश्य देखा जा सकता है अथवा इंटरनेट पर मोर के नाचने की काफी विडियोज उपलब्ध हैं जिससे छात्रों का ज्ञानवर्धन होगा।
पुस्तकालय से ऐसी कहानियां, कविताओं, गीतों को खोजकर पढिए को वर्षा ऋतु और मोर के नाचने से सम्बन्धित हो।
छात्र स्वयं करे।
निबंध में आपने यह पंक्तियां पढ़ी हैं - ' में उसे शाल में लपेटकर अपने संगम के आयी जब गंगा की बीच धार में उससे प्रवाहित किया गया तब उसकी चंद्रिकाओ से बिंबित और प्रतिबिंबित होकर गंगा का एक चोडा पाट मयूर के समान तरंगित हो उठा '। इन पंक्तियों में एक भाव चित्र हैं। इसके आधार पर कल्पना कीजिए और लिखिए की मोरपंख की चंद्रिका और गंगा की लहरों में क्या समानताएं लेखिका ने देखी होंगी जिससे गंगा का एक चोड़ा पाट मयूर के समान तरंगित हो उठा।
निबन्ध में यह भाव चित्र उस समय का हैं जब लेखिका नीलकंठ के मृतक शरीर को गंगा कि बीच धारा में प्रवाहित करने जाती हैं।मोर के पंख की चंद्रीकाए सुनहरे और गहरे रंग की होती है।जब लेखिका नीलकंठ के शरीर को जल में प्रवहित करती हैं तो उनके पंख पानी में फैलकर तैरने लगते हैं!नदी की लहरों पर जब सूरज की किरणे पड़ती हैं तो आंख और भी ज्यादा चमकने लगते है और मानो ऐसा लगता है कि गंगा का एक चोड़ा पाट मयूर के समान तरंगित हो उठा।
नीलकंठ की नृत्य भंगिमा का शब्दचित्र प्रस्तुत कीजिए।
मेघो की छाया में वर्षा होने की अनुभूति होने मात्र से ही नीलकंठ अपने इन्द्रधनुष सरीखे रखो को पंडलकार खड़ा करके जो नाचता था उस गति में सहज ही एक लय एवम् ताल होता था! कभी आगे जाता कभी पीछे , दाए बाय होकर कभी ठहर जाता था।नीलकंठ के नृत्य को देखने के लिए लेखिका भी लालयित रहती थी।
' रूप ' शब्द से कुरूप, स्वरूप, बहुरूप आदि शब्द बनते हैं। इसी प्रकार नीचे लिखे शब्दों से अन्य शब्द बनाए।
गंद - सुगंध, दु्गंध, गंधक
रंग - रंगीन, रंगहीन, बेरंग, रंगरोगन
फल - सफल, विफल, असफलता, असफल
ज्ञान - विज्ञान, सद्ज्ञान, अज्ञान
विस्मयभिभूत शब्द विस्मय और अभिभूत दो शब्दो के योग से बना है। इसमें विस्मिय के य के साथ अभिभूत के अ के मिलने से या हो गया है। अ आदि वर्ण हैं।यह सब वर्ण - ध्वनियों में व्याप्त है। व्यंजन वर्णों में इसके योग को स्पष्ट रूप से देख जा सकता है। जैसे-कृ्+अ-क इत्यादि।अ की मात्रा में चिन्ह (ऻ) से आप परिचित है। अ भाती किसी शब्द में आ के भी जुड़ने से आकर की मात्रा ही लगती हैं।जैसे मंडल + आकार - मंडलाकार। मंडल और आकर की संधि करने पर (जोड़ने पर) मंडलाकार शब्द बनता हैं और मंडलाकार शब्द का विग्रह करने पर (तोड़ने पर) मंडल और आकर दोनो अलग होते हैं। नीचे दिए गए शब्दो के संधि विग्रह कीजिए।
संधि |
विग्रह |
नील + आभ - नीलाभ |
सिंहासन - सिंह + आसन |
नव + आगंतुक - नवागंतुक |
मेघाच्छत्र - मेघ + आछत्र |