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'तलवार का महत्त्व होता है, म्यान का नहीं' – उक्त उदाहरण से कबीर क्या कहना चाहता है? स्पष्ट कीजिए।
‘तलवार का महत्व होता है, म्यान का नहीं’ से कबीर का यह आशय है कि जिस चीज़ की जरूरत होती है उसी का महत्व भी होता है। बेकार की वस्तु की कोई महत्वता नहीं होती। इसी प्रकार से किसी भी व्यक्ति या मनुष्य को उसके गुणों के आधार से तथा उसकी काबिलियत के आधार पर उसकी पहचान अथवा मोल करना चाहिए न कि कुल, जाति, धर्म तथा वेशभूषा आदि से। उसी प्रकार मनुष्य को ईश्वर का भी वास्तविक ज्ञान होना चाहिए। ढोंग-आडंबर तो म्यान के तरह बेकार है। इसीलिए मन से ईश्वर की भक्ति करो।
पाठ की तीसरी साखी-जिसकी एक पंक्ति हैं ‘मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं’ के द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं?
कबीरदास जी इस पंक्ति के द्वारा यह कहना चाहते हैं कि ईश्वर की भक्ति हमेशा एकाग्रचित होकर करनी चाहिए। इस साखी के द्वारा कबीर माला फेरकर ईश्वर की भक्ति करने को ढोंग तथा आडंबर बताते हैं।
कबीर घास की निंदा करने से क्यों मना करते हैं। पढ़े हुए दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
यहाँ घास का अर्थ है पैरों में रहने वाली तुच्छ वस्तु। कबीर अपने दोहे में इस घास तक की निंदा करने से मना करते हैं क्योंकि यदि यह घास का तिनका आँख में चला जाये तो बहुत परेशानी होती है। कबीर के दोहे में "घास" का आशय "दबे-कुचले व्यक्तियों" से है। कबीर के दोहे का संदेश यही है हमें सबका सम्मान करना चाहिए चाहे वह छोटा हो या बड़ा, गरीब हो या अमीर।
मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी बना लेनेवाले दोष होते हैं। यह भावार्थ किस दोहे से व्यक्त होता है?
"जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।।"
“या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।”
“ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय।”
इन दोनों पंक्तियों में ‘आपा’ को छोड़ देने या खो देने की बात की गई है। ‘आपा’ किस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है? क्या ‘आपा’ स्वार्थ के निकट का अर्थ देता है या घमंड का?
“या आपा को . . . . .आपा खोय।” इन दो पंक्तियों में ‘आपा’ को छोड़ देने की बात की गई है। यहाँ ‘आपा’ का आशय "अंहकार" से है। ‘आपा’ घमंड का अर्थ देता है।
आपके विचार में आपा और आत्मविश्वास में तथा आपा और उत्साह में क्या कोई अंतर हो सकता है? स्पष्ट करें।
आपा और आत्मविश्वास में तथा आपा और उत्साह में अंतर हो सकता है –
1. आपा और आत्मविश्वास – आपा का अर्थ है अहंकार, घमंड जबकि आत्मविश्वास का अर्थ है स्वंय पर विश्वास करना।
2. आपा और उत्साह – आपा का अर्थ है अहंकार, घमंड जबकि उत्साह का अर्थ है जोश, उत्सुकता।
सभी मनुष्य एक ही प्रकार से देखते-सुनते हैं पर एकसमान विचार नहीं रखते। सभी अपनी-अपनी मनोवृत्तियों के अनुसार कार्य करते हैं। पाठ में आई कबीर की किस साखी से उपर्युक्त पंक्तियों के भाव मिलते हैं, एकसमान होने के लिए आवश्यक क्या है? लिखिए।
"आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक।
कह कबीर नहिं उलटिए, वही एक की एक।।"
मनुष्य को एक समान होने तथा एकसमान कार्य करने के लिए सबकी सोच का एक जैसा होना जरूरी है।
कबीर के दोहों को साखी क्यों कहा जाता है?
कबीर के दोहों को साखी इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनमें श्रोता वर्ग को गवाह बनाकर असली ज्ञान दिया गया है। कबीर समाज में फैली, बुराइयों, कुरीतियों, जातीय मतभेदों, और बाह्य आडंबरों को इस ज्ञान के जरिये समाप्त करना चाहते थे।
बोलचाल की क्षेत्रीय विशेषताओं के कारण शब्दों के उच्चारण में परिवर्तन होता है जैसे वाणी शब्द बानी बन जाता है। मन से मनवा, मनुवा आदि हो जाता है। उच्चारण के परिवर्तन से वर्तनी भी बदल जाती है। नीचे कुछ शब्द दिए जा रहे हैं उनका वह रूप लिखिए जिससे आपका परिचय हो।
ग्यान, जीभि, पाऊँ, तलि, आंखि, बरी।
1.ग्यान – ज्ञान
2.जीभि – जीभ
3.पाऊँ – पाँव
4.तलि – तले
5.आँखि – आँख
6.बरी – बड़ी
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