बालगोबिन भगत एक गृहस्थ थे परन्तु उनमें साधु कहलाने वाले गुण भी थे –
(1) कबीर के आर्दशों पर चलते थे, उन्हीं के गीत गाते थे। वे शरीर को नश्वर तथा आत्मा को परमात्मा का अंश मानते थे।
(2) कभी झूठ नहीं बोलते थे, खरा व्यवहार रखते थे।
(3) किसी से भी सीधी बात करने में संकोच नहीं करते थे,न किसी से झगड़ा करते थे।
(4) किसी की चीज़ नहीं छूते थे न ही बिना पूछे व्यवहार में लाते थे। वे किसी दूसरे की चीज़ नहीं लेते थे।
(5) उनके खेत में जो कुछ पैदा होता उसे एक कबीरपंथी मठ में ले जाते और उसमें से जो हिस्सा ‘प्रसाद’ रूप में वापस मिलता, वे उसी से गुज़ारा करते।
(6) उनमें लालच बिल्कुल भी नहीं था। इस प्रकार वे अपना सब कुछ इश्वर को समर्पित कर देते थे।