जिस वक्त लेखक झरबेरी से बेर तोड़ रहा था, तभी एक व्यक्ति ने पुकारकर कहा कि तुम्हारे भाई बुला रहे हैं, शीघ्र चले जाओ। यह सुनकर लेखक घर की ओर चलने लगा। लेखक के मस्तिष्क में भाई साहब की पिटाई का भय था। इसलिए वह सहमा - सहमा जा रहा था। उसे यह बात समझ नहीं आ रही थी, कि उससे क्या गलती हो गई है। उसे लग रहा था कि, कहीं उसके बेर खाने के अपराध में उसकी पेशी न हो रही हो। वह अनजाने भय से डरते - डरते घर में घुसा।