लेखक भारत के रहने वाले थे। एक रोज़ वह गर्मियों में तक्षिला के खंडहर देखने गए थे। तेज़ गर्मी में भूख और प्यास के मारे लेखक का बुरा हाल था। खाने की खोज में वह पास के एक गाँव की ओर चल दिए। वहाँ की तंग और गंदी गलियों में लेखक खाने के लिए होटल ढूंढने लगे। कुछ दूर जाने पर पास ही एक दुकान पर रोटियाँ सेंकी जा रही थीं,जिसकी खुशबू से लेखक उस दुकान की ओर खींचे चले गए। वहीं लेखक का परिचय हामिद खाँ से हुआ,जो वहाँ रोटियाँ बना रहा था और वह उसके अब्बा जान की दुकान थी। हामिद खाँ पाकिस्तान का रहने वाला मुस्लिम था और लेखक भारत के एक हिंदू ,पर दोनों ही एक-दूसरे से बहुत प्रभावित हुए। लेखक ने हामिद खाँ को बताया कि भारत में जहाँ वह रहते हैं,वहाँ हिंदू-मुस्लिम कितने प्रेम से रहते हैं। हामिद खाँ ने लेखक की मेहमान नवाज़ी में कोई कसर नहीं छोड़ी और न ही उनसे खाने के पैसे लिए।