वर्तमान युग में धर्म और विज्ञान के बीच जबरदस्त संघर्ष हो रहा है विज्ञान का प्रभाव आज विश्वव्यापी है। धीरे-धीरे लोगों में नास्तिकता आती जा रही है। इसका एकमात्र कारण है विज्ञान की उन्नति। आज से दो शताब्दी पूर्व जनता विज्ञान और वैज्ञानिकों को घृणा से देखती थी। उनका विचार था कि विज्ञान धार्मिक ग्रंथों के प्रतिकूल है। आज भी कुछ ऐसी विचारधारा जनता में है। मनुस्मृति में धर्म की परिभाषा इस प्रकार दी गई है
धृतिः क्षम दमोडस्तेयं शोचमिन्द्रिय निग्रह:
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्म लक्षणम्।
धैर्य, क्षमा, पवित्रता, आत्मसंयम, सत्य, अक्रोध आदि-आदि सदगुणों को धारण करना ही वास्तविक धर्म है। धर्म का उद्देश्य लोक कल्याण है। सच्चा धार्मिक व्यक्ति सम्पूर्ण संसार के कल्याण की कामना करता है।
धर्म और विज्ञान दोनों ने ही मानव जाति के उत्थान में पूर्ण सहयोग दिया है। धर्म ने मानव के हृदय को परिष्कृत किया और विज्ञान ने बुद्धि को। यदि मनुष्य इस समाज में सामान्य स्थान प्राप्त करके जीवनयापन कर सकता है, तो उसे सांसारिक सुख-शांति भी आवश्यक है। अत: संसार में धर्म और विज्ञान दोनों ही मानव कल्याण के लिए आवश्यक तत्व हैं।
धर्म मानव हृदय की उच्च और पवित्र भावना है। धार्मिक भावना से मनुष्य में सात्विक प्रवृत्तियों का उदय होता है। धर्म के लिए मनुष्य को शुभ कर्म करते रहना चाहिए और अशुभ कार्यों को त्याग देना चाहिए। धार्मिक मनुष्य को भौतिक सुखों की अवहेलना करनी चाहिए। वह कर्म के मार्ग से विचलित नहीं होता। हिंदू धर्म के अनुसार मनुष्य की आत्मा अमर है और शरीर नाशवान है। मृत्यु के पश्चात् भी मनुष्य अपने सूक्ष्म शरीर से अपने किए हुए शुभ और अशुभ कमों का फल भोगता है। धार्मिक लोगों का विचार है कि इस अल्प जीवन में सुख भोगने की अपेक्षा पुण्य कार्य करना चाहिए।
जो धर्म समाज को उन्नति की ओर ले जा रहा था, वह अंधविश्वास और अंध श्रद्धा में ढलकर पतन का कारण बन गया। अंधविश्वास के अंधकार से निकलकर मानव ने बुद्धि और तर्क की शरण ली। लोगों में आँखों देखी बात या तर्क की कसौटी पर कसी हुई बात पर विश्वास करने की प्रवृत्ति जागृत हुई। विज्ञान की भी मूल प्रवृत्ति यही है, धर्मग्रंथों में लिखी हुई या उपदेशों द्वारा कही हुई बात को वह सत्य नहीं मानता, जब तक कि नेत्रों के प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा तर्क सिद्ध न हो जाए।
धर्म की आड़ लेकर जो अपने स्वार्थ साधन में संलग्न थे, उनके हितों को विज्ञान से धक्का पहुँचा, वे वैज्ञानिकों के मार्ग में विघ्न उपस्थित करने लगे, “उघरे अंत न होई निबाहू “। अब धर्म के बाह्य आडंबरों की पोल ख़ुल गई तो जनता सत्य के अन्वेषण में प्राणप्रण से लग गई। जो सुख और समृद्धि धार्मिकों की स्वर्गीय कल्पना में थे, उन्हें वैज्ञानिकों ने अपनी खोजों से इस संसार में प्रस्तुत कर दिखाया। धर्म ईश्वर की पूजा करना था, विज्ञान ने प्रकृति की उपासना की। विज्ञान ने पाँचों तत्त्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) को अपने वश में किया। उसने अपनी रचचि के अनुसार भिन्न-भिन्न सेवायें लीं, इस प्रकार मानव ने जीवन और जगत को सुखी और समृद्ध बना दिया। वैज्ञानिकों ने अपने अनेक आश्चर्यजनक परीक्षणों से जनता में तर्क बुद्धि उत्पन्न करके उनके अंधविश्वासों को समाप्त कर दिया। आज के वैज्ञानिक मानव ने क्या नहीं कर दिखाया।
यह मनुज,
जिसका गगन में जा रहा है यान
काँपते जिसके करों को देखकर परमाणु।
खोल कर अपना ह्ददय गिरि, सिंधु, भू, आकाश,
है सुना जिसको चुके निज गूढ़तम इतिहास।
खुल गये परदे, रहा अब क्या अज्ञेय
किंतु नर को चाहिये नित विघ्न कुछ दुर्जेय।
धर्म का स्वरूप विकृत होकर जिस प्रकार बाह्माडंबरों में परिवर्तित हो गया था, उसी प्रकार विज्ञान भी अपनी विकृति की ओर है। विज्ञान ने जब तक मानव की मंगल कामना की, तब तक वह उत्तरोत्तर उन्नतिशील रहा। जो विज्ञान मानव-कल्याण के लिए था, आज उसी से मानवता भयभीत है। परमाणु आयुधों के विध्वंसकारी परीक्षणों ने समस्त मानव जगत को भयभीत कर दिया है। धर्म के विस्तृत स्वरूप ने जनता को मूर्खता की ओर अग्रसर किया था, विज्ञान का दुरुपयोग जनता को प्रलय की ओर अग्रसर कर रहा है।
वर्तमान समय में लोगों ने धर्म और संप्रदाय को एक मान लिया है। सांप्रदायिक बुद्धि विनाश का रास्ता दिखाती है। यह ऐसी प्रतिगामी शक्ति है जो हमें पीछे की ओर धकेलती है। मानव को इस प्रवृत्ति से बचना है। अपने-अपने धर्मों का पालन करते हुए भी हमें टकराव की स्थिति उत्पन्न होने नहीं देनी चाहिए। मानव धर्म को स्वीकार कर लेने से सभी शांतिपूर्वक रह सकेंगे। धर्म के नाम पर हमारे देश का पहले ही विभाजन हो चुका है, अब हमें इसे और विभाजित करने के प्रयास नहीं करने चाहिए।
मानव को वर्तमान युग की माँग की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। समस्त विश्व के मानव हमारे भाई हैं, यही भाव विकसित करना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। धर्म कभी संकुचित दृष्टिकोण अपनाने के लिए नहीं कहता, अपितु वह तो हमें विशालता प्रदान करता है।
धर्म को लोगों ने धोखे की दुकान बना रखा है। वे उसकी आड़ में स्वार्थ सिद्ध करते हैं। कुछ लोग धर्म को छोड़कर संप्रदाय के जाल में फँस रहे हैं। ये संप्रदाय बाह्य कृत्यों पर जोर देते हैं। ये चिह्नों को अपना कर धर्म के सार-तत्व को मसल देते हैं। धर्म मनुष्य को अंतर्मुखी बनाता है, उसके हृदय के किवाड़ों को खोलता है, उसकी आत्मा को विशाल बनाता है। धर्म व्यक्तिगत विषय है।
धर्म के नाम पर राजनीति करना अत्यंत घृणित कार्य है। सरकार भी धर्म को राजनीति से पृथक् करने का कानून बनाने पर विचार कर रही है। हमारे संविधान में प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की गई है। प्रत्येक मानव को अपने विश्वास के अनुसार धर्म अपनाने की पूरी छूट है।