‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ में लेखक बताता है कि कमल, कोइयाँ और हरसिंगार के अलावा ऐसे कितने फूल थे जिनकी चर्चा फूलों के रूप में नहीं होती और वे असली फूल हैं-तोरी, लौकी, भिंडी, भटकटैया, इमली, अमरूद, कदंब, बैंगन, कोंहड़ा, शरीफ़ा, आम के बौर, कटहल, बेल, अरहर, उड़द, चना, मसूर, मटर के फूल, सेमल के फूल, कदम (कदंब) के फूलों से पेड़ लदबदा जाता। मुझे तो लगता है कदंब का दुनिया भर में एक ही पेड़ है-बिस्कोहर के पच्हूँ टोला में ताल के पास।
सरसों के फूल का पीला सागर लहराता हुआ। खेतों में तेल-तेल की गंध, जैसे हवा उसमें अनेक रूपों में तैर रही हो। सरसों के अनवरत फूल-खेत सौंदर्य को कितना पावन बना देते हैं। बिसनाथ के गाँव में एक फल और बहुत इफ़रात होता था-उसे भरभंडा कहते थे, उसे ही शायद सत्यानाशी कहते हैं। नाम चाहे जैसा हो सुंदरता में उसका कोई जवाब नहीं। फूल गोभी तितली, जैसा, आँखें, आने पर माँ उसका दूध आँख में लगाती और दूबों के अनेक वर्णी छोटे-छोटे फूल-बचपन में इन सबको चखा है, सूँघा है, कानों में खोसा है।