हम लेखक की बात से सहमत हैं। उन्होंने भावनात्मक समत्व की मानवीय दृष्टि के तहत जातिवाद का उन्मूलन चाहा है जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों और जीवन-सुविधाओं का तर्क दिया है। भावनात्मक समत्व तभी आ सकता है जब समान भौतिक स्थितियाँ व जीवन-सुविधाएँ उपलब्ध होंगी। समाज में जाति-प्रथा का उन्मूलन समता का भाव होने से ही हो सकता है। मनुष्य की महानता उसके प्रयत्नों के परिणामस्वरूप होनी चाहिए। मनुष्य के प्रयासों का मूल्यांकन भी तभी हो सकता है जब सभी को समान अवसर मिले। शहर में कान्वेंट स्कूल व सरकारी स्कूल के विद्यार्थियों के बीच स्पर्धा में कान्वेंट स्कूल का विद्यार्थी ही जीतेगा क्योंकि उसे अच्छी सुविधाएँ मिली हैं। अत: जातिवाद का उन्मूलन करने के बाद हर व्यक्ति को समान भौतिक सुविधाएँ मिलें तो उनका विकास हो सकता है, अन्यथा नहीं।