प्रस्तुत कविता में दी गई इस पंक्ति के माध्यम से कवि तुलसीदास जी श्री राम और भरत के चरित्र को सकरात्मक रूप से दर्शाते हैं। कवि कहते हैं कि जब श्रीराम अपने छोटे भाई भरत के साथ मैदान में खेल खेलते हैं तो वह खुद हारकर अपने भाई भरत को जीता देते हैं जिससे उनके अनुज को कोई दुख ना पहुँचे। श्री राम अपने छोटे भाई को दुखी नहीं देख सकते हैं। अपने बड़े भाई के बारे में भरत कहते हैं कि मेरे प्रिय भाई बहुत ही करुणा वाले हैं, वह सभी से प्रेम करते हैं तथा कभी किसी को कष्ट नहीं पहुँचाते हैं। इस पंक्ति से हमें यह ज्ञात होता हैं कि राम और भरत दोनों ही एक दूसरे से बहुत प्रेम करते हैं तथा एक दूसरे को कभी दुख में नहीं देख सकते हैं। उनके विचार एक दूसरे के प्रति सकरात्मक हैं।