मेरे पिता और मकबूल के पिता के व्यक्तित्व की तुलना कुछ यूं की जा सकती है:
1. पुत्र के प्रति प्यार और समझदारी: मकबूल के पिता को जब लगा कि दादा की मृत्यु के पश्चात उनका बेटा उस शौक से बाहर नहीं निकल पा रहा है तो उन्होंने कोई ज़ोर जबरदस्ती नहीं दिखाई बल्कि उसका दाखिला बोर्डिंग स्कूल में करवा दिया ताकि वह जाकर उसका मन बदल सके, उसके नए दोस्त बने और नए दोस्तों के साथ रहकर वो धीरे धीरे अपने दादा की यादों से उबर सके और ऐसा हुआ कि मकबूल अपने दादाजी की मृत्यु को भूलने लगा।
मकबूल और मेरे पिता में यह समानता है कि मेरे पिता भी मकबूल के पिता की तरह समझदार और मुझसे प्यार करने वाले हैं। उन्होंने मेरे साथ कभी भी शक्ति नहीं की है और हमेशा कोशीश करते हैं कि मैं सहज रह सकूँ
2. कला और प्रतिभा के प्रति कद्रदान: मकबूल के पिता ने मकबूल की प्रतिभा को पहचाना और उसकी शाबाशी देते हुए उसका पूरा समर्थन किया। बेटी की कला देखकर वह काफी प्रसन्न हो गए और बेंद्रे साहब के कहने से ही उसके लिए ऑयल पेंटिंग का सामान मंगवा दिया इससे यह ज्ञात होता है कि वे प्रतिभा और कला के प्रति कद्रदान थे।
मेरे पिता भी इस मामले में वैसे ही है, संगीत में मेरी रुचि है यह देख मेरे पिताजी ने मुझे संगीत सीखने के लिए प्रेरित किया और मेरा दाखिला संगीत स्कूल में करा दिया। और मुझे जीवन में अपनी दिशा चुनने की स्वतंत्रता दी।
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भविष्य के प्रतिग्रसोची: मकबूल के पिता को पता था कि मकबूल एक अच्छा चित्रकार हैं और उन्होंने इस कला के प्रति मकबूल को हमेशा प्रेरित किया। वो मकबूल के भविष्य को सुनहरा बनाना चाहते थे इसलिए उन्होंने अपने पारिवारिक संबंधों की परवाह नहीं की। पर आज मकबूल को चित्रकला जगत के प्रसिद्ध व्यक्तियों में गिना जाता है।
इससे उनके अग्रसोची होने का पता चलता है। अब तक मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ लेकिन यदि कभी हुआ तो मेरे पिता की सोच हालांकि मैने पिताजी के बारे में सबसे यही सुना है कि वह अग्रसोची है।