भाषा की चित्रात्मकता।
'जाड़े के तीन दिन थे और रात का समय। नमक के सिपाही, चौकीदार नशे मस्त थे, एक मील पूर्व युमना बहती थी, उस पर नावों का एक पुल बना हुआ था, लहरों ने अदालत की नींव हिला दी।
लोकोित्तियाँ - और मुहावरों का प्रयोग।
1) निगाह में बांध लेना, जन्म भर की कमाई, कगारे का वृक्ष, इज्जत धूल में मिलना, मन का मैल मिटना, मुंह छिपाना, सिर - माथे पर लेना, हाथ मलना, सीधे मुंह बात ना करना, मस्जिद में दिया जलाना।
हिंदी उर्दू का सांझा रूप - इन बातों को निगाहों में बांध लो।
2) बेगराज को दाम पर पाना जरा कठिन है।
बोलचाल की भाषा -
1) बाबू साहेब ऐसा ना कीजिए, हम मिट जाएंगे।
2) "कौन पंडित अलोपीदीन? दांतागंज के”
3) क्या करें लड़का अभागा कपूर है।
इससे कहानी कल्पित कथा न लग कर वास्तविक प्रतीत होती है। उपरोक्त सभी विशेषताओं के कारण भाषा में शुद्धता, सजीवता, एवं रोचकता कथा आ गई है।
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पूर्णमासी का चाँद।
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सुअवसर ने मोती दे दिया।
मुहावरे -
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फूले न समाना।
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सन्नाटा छाना।
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पंजे में आना।
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हाथ मलना।
इनके योग से कहानी का भाव बढ़ा है।